• 6 responses

    1. @alwayslearning8365
      2024-08-16

      Thank you.

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    2. @619caliman
      2024-08-16

      Las Vegas has less buffets and big chain Caesar just announced cuts in jobs.

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    3. @Pahfo-o5f
      2024-08-16

      Better talk about the main trend of this year – providing liquidity. Don't forget to mention Cryptonica, their impact on the market is huge.

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    4. @joehernande-721
      2024-08-16

      How much was our deficit spending from 2021 to the present

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    5. @boeingpameesha9550
      2024-08-16

      Peace prosperity and progress are people's pride and property, please participate.
      जय हिन्द, जय भारत, श्रेष्ठ भारत।🙏🏼

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    6. @PrakashSharma-i4w
      2024-08-18

      N❤❤। 🧘🏽🧘🏽🧘🏽वेद में विभिन्न मंत्रो में आया है। सब कुछ बनाने वाला सिर्फ एक अजन्मा परम तत्त्व परमेश्वर है। कुरान में भी आया है सबकुछ बनाने वाला अल्लाह है

      अगर हम वेदों के ईश्वर को अल्लाह कहते तो भी गुण एक समान है और दोनो किताबो में भी लिखा है सब कुछ बनाने वाला एक सर्वव्यापी हर प्रकार से शुद्ध चैतन्य है उसकी सीमा अनंत और अनादि है ।

      अल्लाह शब्द अरब देश में कुरान के आने से पहले भी बोला जाता था। इतिहास में इसका वर्णन मिलता ।

      अल्लाह नाम के अर्थ का मतलब = अल+ इलाह से बना है । इलाह का मतलब = सब कुछ बनाने वाला , उसका सुरक्षा करने वाला, और पालन- पोषण करने और न्याय करने वाला इत्यादि।

      कुरान में उस सर्वशक्तिमान परमेश्वर का नाम उसके गुणों के आधार पर है। कुरान का ज्ञान अरब देश में आया । और हम उसका अनुवाद पढ़ते है हर व्यक्ति अपने जमाने की हिसाब से कुरान का अनुवाद किया है । अनुवाद गलत हो सकता है । क्योंकि एक अरेबिक शब्द के बहुत से मतलब होते है ।

      ये बिल्कुल सच बात है की कुरान की एक एक बात सत्य है ।। वेद और कुरान ये दोनो किताब उसी एक सर्वव्यापी परमेश्वर का वचन है ।। इसलिए बोला जाता है वेद और कुरान की रचना किसी मनुष्य ने नही की है । ये तो साक्षात परमेश्वर का कथन वाक्य है। अतः हमें उसका प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए जिसने हम सभी मनुष्यों को बनाया।

      ( वेद के कुछ मंत्र )

      ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्याञ्जगत् । (यजुर्वेद अध्याय ४० मंत्र २ )
      अर्थात् जो कुछ इस संसार में जगत् है,उस सब में व्याप्त होकर जो सृष्टि से परे है वह ईश्वर कहलाता है ।

      हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत् । स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमाम् कस्मै देवाय हविषा विधेम ।। ( यजुर्वेद १३/४ )
      अर्थात् सृष्टि से पूर्व जो सूर्य आदि तेजवाले लोकों का निर्माण किया , और जो कुछ उत्पन्न हुआ था, है और जो होगा,उसका स्वामी था, है और आगे भी रहेगा , वही पृथ्वी से लेकर सूर्य तथा सभी लोक तक सभी सृष्टि को बना के धारण कर रहा है ,उस सुखस्वरूप परमात्मा ही की ध्यान हम सब लोग किया करें ।

      पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरंशुद्धमपापविद्धं। कवीर्मनीषी परिभू: स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्य: समाभ्य: । ( यजुर्वेद ४०/८ )

      अर्थात् वह ईश्वर शीघ्रकारी,सर्व शक्तिमान , न्यायकारी और शरीर से रहित,छिद्र रहित, नस – नाड़ियों के बंधन से रहित , अविद्या आदि दोषों से पृथक,निष्पाप,सर्वज्ञ,सब जीवों की के मनों की वृत्तियों को जानने वाला , अनादि , उत्पत्ति और विनाश रहित , वेदों का प्रकाशक और सदा एकरस रहता है वहीं परमेश्वर उपासना करने योग्य है ।

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